गुरु गोरखनाथ जी के दो महान सिद्ध योगी | harju devta ki kahani | saim devta | हरूसैम की कहानी

Bhriguraj Singh Mehra
Bhriguraj Singh Mehra
8.5 هزار بار بازدید - 10 ماه پیش - गुरु गोरखनाथ जी के दो
गुरु गोरखनाथ जी के दो महान सिद्ध योगी | harju devta ki kahani | saim devta | हरूसैम की कहानी


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जब भी हम भारत नाम के शब्द को सुनते हैं तो हमारा सिर गर्व से ऊंचा हो जाता है... क्योंकि यह वही भूमि है जिसको प्राचीन काल में सोने की चिड़िया कहा जाता था और साथ ही साथ.. सदियों से यहां सनातन परंपरा विराजमान रही है...यह वह भूमि है जहां पर अनेकों साधु संतों ने युग युगांतर से साधनाएं और तपस्या की है... भारतीय धरती ना केवल अपने पुरातन संस्कृति को दर्शाती है बल्कि अपने साथ 33 करोड़ या 33 कोटी देवी देवताओं का दिव्य तेज भी दिखलाती है...

ऐसे ही इस पावन भूमि में बस एक प्रदेश देवभूमि उत्तराखंड के नाम से भी जाना जाता है.. जहां के रीति रिवाज , पद्धति और सांस्कृतिक कलाएं ..अपने में कई पीढियां को सजोयें रखे है...

हर हर महादेव दोस्तों आप सभी का स्वागत है हमारे इस यूट्यूब चैनल पर...

हमारी आज की कहानी देवभूमि उत्तराखंड के दो शक्तिशाली, दिव्या और पराक्रमी भाइयों की है... जिन्होंने अपना सब कुछ त्याग कर  अपने शिष्यों को सतमार्ग धर्म और योग पर चलने का मार्ग बतलाया... और नाथ शिरोमणि गुरु गोरखनाथ जी ने उनको उत्तराखंड में अपने गुरु आसन पर स्थापित किया...

तो चलिए अब इस कथा को शुरू करते हैं...

एक समय  की बात  है ...
कालीनारा नाम की एक राजकुमारी... राजा निकन्दर की पुत्री थी।
कुंभ के समय अनेक लोग हरिद्वार स्नान के लिए राजा के दरबार से जाया करते थे ...कई सालों से उनको जाते देखकर.. राजकुमारी
कालीनारा के मन में भी हरिद्वार स्नान पर जाने की इच्छा हुई..
तब राजकुमारी कालीनारा ने मकर संक्रांति के अवसर पर अपने परिवार के लोगों से हरिद्वार कुंभ के गंगा स्नान में जाने की अनुमति मांगी।
राजकुमारी काली नारा की यह बात सुनकर परिवार जनों को राजकुमारी की चिंता हो गई और उन्होंने राजकुमारी कालीनारा से बोला... यात्रा बहुत लंबी है और मार्ग में कोई पापाचरण हो गया या दुर्घटना घट गई तो क्या होगा।
तब राजकुमारी कालीनारा ने जवाब दिया कि वह अपने से बड़ों को चाचा, ताऊ, दादा, दीदी, आमा आदि तथा छोटों को भय्या, बेणी कह कर संबोधित करेगी और मार्ग में कोई भी पाप नहीं होने देगी यह वह वचन देती है।
राजकुमारी कालीनारा की यह बात सुनकर उनके परिवार जनों ने उनको हरिद्वार जाने की अनुमति प्रदान कर दी...
कालीनारा ने डनेरुओं यानी पालकी  वालों को बुलाया और बैठकर मकर संक्रांति के अवसर पर गंगा स्नान के लिए देवताओं, जोगियों और राज कर्मचारियों के साथ हरिद्वार के लिए निकल पड़ी । रास्ते की मार्ग बड़ा ही दुर्गम था। पैदल यात्रा में उन्हें कई जगह रात्रि विश्राम भी करना पड़ा। अगले दिन की सुबह हरिद्वार कुंभ स्नान के दिन जब उन्होंने ब्रह्म मुहूर्त में ब्रह्म कुंड में कमर तक के गहरे गंगाजल में स्नान किया...ठीक
उसी समय सूर्योदय हो गया और सूर्य की पहली किरण जब राजकुमारी के पेट के हिस्से में पड़ी तो वह अचानक से वह दैवीय योग से गर्भवती हो गयी...
पर राजकुमारी को यह दिव्य चमत्कार एक पाप की तरह लग रहा था...और वह सोचने लगी कि कि यह सब कैसे हो गया जिसका घर वालों को डर था वही हो गया ...अब वह किस प्रकार से अपने राज्य वापस लौटेगी ?
गंगा स्नान करने के बाद वह तुरंत दुखी होकर एक जंगल को चली गई और वही भटकने लगी ।
भटकते भटकते वह शिव अवतारी नाथ शिरोमणि गुरु गोरखनाथ जी के आश्रम पहुंची...
उसने देखा की बाबा जी तो समाधि में लीन थे...और ईंधन के अभाव में उनकी धूनी बुझ चुकी थी और सिंचाई के अभाव में फुलवारी के फूल भी सूख चुके थे।


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10 ماه پیش در تاریخ 1402/08/07 منتشر شده است.
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