Bade Hain Dil Ke Kaale-Karaoke
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8 ماه پیش
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प्रस्तुत है मेरी पसंद का
प्रस्तुत है मेरी पसंद का एक पुराना मगर बहुत ही मधुर, Peppy और Lively गीत
नासिर हुसैन की फिल्म “दिल देके देखो” (1959) एक superhit फिल्म थी. अगर 2-3 शब्दों में कहा जाए तो “दिल देके देखो” एक चुलबुले, मजेदार रोमांस की गीतों भरी कहानी थी. उस दौर की और उस के बाद की नासिर हुसैन की सभी फ़िल्में superhit हुईं. शम्मी कपूर साहब की नई नई बनी ‘शरारती रोमांटिक हीरो’ की ईमेज एक बड़ा आकर्षण थी. पर “दिल देके देखो” में कई और भी चीज़ें नयापन लिए थीं. ये फिल्म आशा पारेख जी की Debut फिल्म थी. तब उनकी उम्र थी मात्र 18 साल. फिल्म debut के अलावा भी इस फिल्म से आशा जी के निजी जीवन में एक बहुत बड़ा मोड़ आया. पर उस पर कभी और बात करेंगे. इस फ़िल्म में एक और debut था. मशहूर कॉमेडियन राजेन्द्रनाथ का. उनकी “पोपटलाल” जैसी ईमेज जो बनी वो ताउम्र उनके सफल करिअर के साथ बनी रही.
पर इस फिल्म का सबसे अनोखा debut था संगीतकारा उषा खन्ना जी का. SD बर्मन जी, नौशाद साहब, C रामचंद्र जी, अनिल बिस्वास जी, शंकर जयकिशन जी जैसे दिग्गज संगीतकारों के होते हुए, एक महिला संगीतकार फिल्मों की दुनिया में आए और इतनां सुन्दर संगीत रचे जो लोगों को झूमने पर मजबूर कर दे ये एक अजूबा हुआ. वैसे तो फिल्म की कहानी को देखते हुए नासिर हुसैन जी के सबसे फेवरेट OP नय्यर जी का होना लाज़मी था. मगर कुछ “अनचाही” वजहों से OP फिल्म में नहीं थे. और उषा खन्ना की एंट्री हुई. उस वक़्त उषा जी की उम्र थी मात्र 17 साल. उन्होंने फिल्म के लिए 8-10 जबरदस्त गीत बना दिए. अगर पता न हो तो सब आँख बंद कर के बोलेंगे कि ये OP नय्यर का संगीत है. उषा जी वैसे तो OP के संगीत से बहुत प्रभावित थीं ही, पर अरबी संगीत भी उन्हें प्रभावित करता था. प्रस्तुत गीत “ बड़े हैं दिल के काले..” में उन्होंने tambourine (खंजड़ी और उससे मिलते जुलते वाद्य), एकोर्डियन, Trumpet और सबसे बढ़कर जो ढोलकी की rhythm (जो कभी नय्यर जी की याद दिलाती है कभी शंकर जयकिशन जी के ठेके की) का ऐसा कमाल का मिश्रण प्रस्तुत किया कि वाह. आज की पीढ़ी को उषा खन्ना जी का नाम शायद अनजाना लगे पर जब उन्हें बताया जाए कि “सौतन” फिल्म का “शायद मेरी शादी का ख़याल दिल में आया है..” उषा जी का ही गीत है तो वो तुरंत पहचान जाएंगे. (इस गीत के लिए उन्हें filmfare अवार्ड का नॉमिनेशन मिला था)
“दिल देके देखो” की क़ामयाबी के बावजूद उषा खन्ना जी को वो मक़ाम या बेशुमार काम नहीं हासिल हुआ. एक Male dominant क्षेत्र में किसी महिला संगीतकार को सफल होते देखना (वो भी उम्र में इतनी छोटी) शायद मर्दों को मंजूर नहीं था. उषा खन्ना जी को काम मिलने के लिए और मिलने के बाद उसे popular करवाने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. बाद में “शबनम”, “सौतन”, “साजन बिना सुहागन”, “साजन की सहेली”, “दादा” जैसी कई उल्लेखनीय फिल्मों में संगीत दिया. पर कुल मिला कर उनका फ़िल्मी सफ़र उतार चढ़ाव भरा रहा. निर्माता निर्देशक सावन कुमार के साथ उन्होंने विवाह भी किया और उनके साथ ज्यादातर फिल्मों में उन्होंने काम भी किया. पर शादी के कुछ अरसे बाद उन दोनों ने अपने जिंदगी के रास्ते अलग कर लिए. पर हाँ गीत संगीत का रिश्ता बना रहा.
वैसे तो हिंदी फिल्म संगीत में पहली महिला संगीतकार के रूप में जद्दनबाई (नरगिस दत्त जी की मां) का नाम लिया जाता है जिन्होंने ने 30s के दशक में कुछ गीतों की रचना की, मगर कुछ ख़ास योगदान नहीं रहा. उस लिहाज़ से देखें तो उषा खन्ना ही हिंदी फिल्मों के पहली और अब तक की सबसे सफल महिला संगीतकार हैं.
उषा जी के बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है. पर फिलहाल इतना ही.
प्रस्तुत तेज रफ़्तार गीत “ बड़े हैं दिल के काले..” सुनते समय ऐसा लगेगा मानों आप रेल लाइन के पास खड़े हैं और “वंदे भारत” ट्रेन फुल स्पीड में गुज़र गयी. इस के शायर हैं मजरूह सुल्तानपुरी. और इसे बहुत ही चुलबुले, धमाल अंदाज़ में मगर उतनी ही मिठास के साथ गाया है रफ़ी साहब और आशा भोंसले जी ने.
एक बात और.. अगर फिल्म या इस गाने का विडियो आप देखेंगे तो आशा पारेख जी को देखकर आप ज़रूर कहेंगे कि हाऽऽय.. काश ये फिल्म रंगीन होती
नासिर हुसैन की फिल्म “दिल देके देखो” (1959) एक superhit फिल्म थी. अगर 2-3 शब्दों में कहा जाए तो “दिल देके देखो” एक चुलबुले, मजेदार रोमांस की गीतों भरी कहानी थी. उस दौर की और उस के बाद की नासिर हुसैन की सभी फ़िल्में superhit हुईं. शम्मी कपूर साहब की नई नई बनी ‘शरारती रोमांटिक हीरो’ की ईमेज एक बड़ा आकर्षण थी. पर “दिल देके देखो” में कई और भी चीज़ें नयापन लिए थीं. ये फिल्म आशा पारेख जी की Debut फिल्म थी. तब उनकी उम्र थी मात्र 18 साल. फिल्म debut के अलावा भी इस फिल्म से आशा जी के निजी जीवन में एक बहुत बड़ा मोड़ आया. पर उस पर कभी और बात करेंगे. इस फ़िल्म में एक और debut था. मशहूर कॉमेडियन राजेन्द्रनाथ का. उनकी “पोपटलाल” जैसी ईमेज जो बनी वो ताउम्र उनके सफल करिअर के साथ बनी रही.
पर इस फिल्म का सबसे अनोखा debut था संगीतकारा उषा खन्ना जी का. SD बर्मन जी, नौशाद साहब, C रामचंद्र जी, अनिल बिस्वास जी, शंकर जयकिशन जी जैसे दिग्गज संगीतकारों के होते हुए, एक महिला संगीतकार फिल्मों की दुनिया में आए और इतनां सुन्दर संगीत रचे जो लोगों को झूमने पर मजबूर कर दे ये एक अजूबा हुआ. वैसे तो फिल्म की कहानी को देखते हुए नासिर हुसैन जी के सबसे फेवरेट OP नय्यर जी का होना लाज़मी था. मगर कुछ “अनचाही” वजहों से OP फिल्म में नहीं थे. और उषा खन्ना की एंट्री हुई. उस वक़्त उषा जी की उम्र थी मात्र 17 साल. उन्होंने फिल्म के लिए 8-10 जबरदस्त गीत बना दिए. अगर पता न हो तो सब आँख बंद कर के बोलेंगे कि ये OP नय्यर का संगीत है. उषा जी वैसे तो OP के संगीत से बहुत प्रभावित थीं ही, पर अरबी संगीत भी उन्हें प्रभावित करता था. प्रस्तुत गीत “ बड़े हैं दिल के काले..” में उन्होंने tambourine (खंजड़ी और उससे मिलते जुलते वाद्य), एकोर्डियन, Trumpet और सबसे बढ़कर जो ढोलकी की rhythm (जो कभी नय्यर जी की याद दिलाती है कभी शंकर जयकिशन जी के ठेके की) का ऐसा कमाल का मिश्रण प्रस्तुत किया कि वाह. आज की पीढ़ी को उषा खन्ना जी का नाम शायद अनजाना लगे पर जब उन्हें बताया जाए कि “सौतन” फिल्म का “शायद मेरी शादी का ख़याल दिल में आया है..” उषा जी का ही गीत है तो वो तुरंत पहचान जाएंगे. (इस गीत के लिए उन्हें filmfare अवार्ड का नॉमिनेशन मिला था)
“दिल देके देखो” की क़ामयाबी के बावजूद उषा खन्ना जी को वो मक़ाम या बेशुमार काम नहीं हासिल हुआ. एक Male dominant क्षेत्र में किसी महिला संगीतकार को सफल होते देखना (वो भी उम्र में इतनी छोटी) शायद मर्दों को मंजूर नहीं था. उषा खन्ना जी को काम मिलने के लिए और मिलने के बाद उसे popular करवाने के लिए काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. बाद में “शबनम”, “सौतन”, “साजन बिना सुहागन”, “साजन की सहेली”, “दादा” जैसी कई उल्लेखनीय फिल्मों में संगीत दिया. पर कुल मिला कर उनका फ़िल्मी सफ़र उतार चढ़ाव भरा रहा. निर्माता निर्देशक सावन कुमार के साथ उन्होंने विवाह भी किया और उनके साथ ज्यादातर फिल्मों में उन्होंने काम भी किया. पर शादी के कुछ अरसे बाद उन दोनों ने अपने जिंदगी के रास्ते अलग कर लिए. पर हाँ गीत संगीत का रिश्ता बना रहा.
वैसे तो हिंदी फिल्म संगीत में पहली महिला संगीतकार के रूप में जद्दनबाई (नरगिस दत्त जी की मां) का नाम लिया जाता है जिन्होंने ने 30s के दशक में कुछ गीतों की रचना की, मगर कुछ ख़ास योगदान नहीं रहा. उस लिहाज़ से देखें तो उषा खन्ना ही हिंदी फिल्मों के पहली और अब तक की सबसे सफल महिला संगीतकार हैं.
उषा जी के बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता है. पर फिलहाल इतना ही.
प्रस्तुत तेज रफ़्तार गीत “ बड़े हैं दिल के काले..” सुनते समय ऐसा लगेगा मानों आप रेल लाइन के पास खड़े हैं और “वंदे भारत” ट्रेन फुल स्पीड में गुज़र गयी. इस के शायर हैं मजरूह सुल्तानपुरी. और इसे बहुत ही चुलबुले, धमाल अंदाज़ में मगर उतनी ही मिठास के साथ गाया है रफ़ी साहब और आशा भोंसले जी ने.
एक बात और.. अगर फिल्म या इस गाने का विडियो आप देखेंगे तो आशा पारेख जी को देखकर आप ज़रूर कहेंगे कि हाऽऽय.. काश ये फिल्म रंगीन होती
8 ماه پیش
در تاریخ 1402/08/23 منتشر شده
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