Guruji Satsang । Warning समझ ले तकलीफों का बादल घर में फटने वाला हैं इस त्रिशक्ति चाबी को Use कर आज

Dhyaan Guru Ji Ka
Dhyaan Guru Ji Ka
14.1 هزار بار بازدید - 2 ماه پیش - Guruji Satsang । ख़ास रहस्यमय
Guruji Satsang । ख़ास रहस्यमय बाते तकलीफों को दूर करने वाली ऐसी चाबी फिर हाथ नहीं आयेगी ये सुन तुरंत


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गुरुजी🙏🏻🙏🏻

गुरुजी एक दिव्य प्रकाश है जो कि मानवता को आशीर्वाद और ज्ञान देने के लिए पृथ्वी पर आए थे. पंजाब के मलेरकोटला जिले के डूगरी गाँव में, 7 जुलाई 1954 के सूर्योदय ने गुरूजी के जन्म की घोषणा की. गुरूजी ने अपना प्रारम्भिक जीवन डूगरी के आसपास ही बीताया, वहीं स्कूल गए, वहीं कॉलेज गए, और वहीं से अर्थशास्त्र और राजनीतिशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. लोग कहते हैं कि उनमें बचपन से ही आध्यात्मिकता की एक चिंगारी थी.

उस चिंगारी को पूर्ण रूप से दीप बनने में ज्यादा वक्त नहीं लगा; गुरुजी के आशीर्वाद की गंगा सैकड़ों हज़ारों लोगो का दु:ख-दर्द कम करने के लिए बहने लगी. गुरुजी जालंधर, चंडीगढ़, पंचकूला और नई दिल्ली सहित विभिन्न स्थानों पर बैठने लगें और यहीं से सतसंग की शुरुआत हुई. यहाँ उनका आशीर्वाद लेने के लिए भारत और दुनिया के अन्य भागों से दूर-दूर से लोग आते थे. गुरुजी के सत्संग में चाय और लंगर प्रसाद  दिया जाता था जिनमें गूरूजी का विशेष दिव्य आशीर्वाद और दिव्य शक्ति होती थी. भक्तों को गुरूजी की कृपा का अनुभव विभिन्न रूपों में हुआ: असाध्य रोग दूर हुए, और तमाम सारी समस्याए -आर्थिक, मानसिक, शारीरिक, कानूनी आदि - हल हुईं. कुछ भक्तों को तो देवताओं के दिव्य दर्शन भी हुए. गुरुजी के लिए कुछ भी असंभव नहीं था, क्योंकि उन्होंने ही भाग्य लिखा था और उसे वे बदल भी सकते थे.

गुरुजी के दरवाजे सभी लोगों के लिए समान रूप से खुले थे - चाहे वे उच्च वर्ग के हो या निम्न वर्ग के, गरीब हो या अमीर, या किसी भी धर्म-सम्प्रदाय के हो.साधारण से साधारण आदमी, और बड़े से बड़े आदमी उनके पास आशीर्वाद लेने आते थे. राजनेताओं, व्यवसायियों, नौकरशाहों, सशस्त्र सेवा कर्मियों, डॉक्टरों, और अन्य व्यवसायिओं की लाईन लगी रहती थी. सब को उनकी ज़रूरत थी और गुरुजी ने बिना किसी भेदभाव के सबको समान रूप से आशीर्वाद दिया. जो लोग उनके पास बैठते थे, उनके चरण छूते थे, उन्हें भी उतना ही फ़ायदा मिलता था जितना कि विश्व के किसी भी कोने में बैठे श्रद्धालुओं को. सबसे अहम बात थी भक्त का सम्पूर्ण आत्म-समर्पण और गुरुजी में अडिग विश्वास. गुरुजी दाता थे, उन्होंने कभी किसी से कुछ नहीं लिया और न ही लेने की उम्मीद रखी. गुरुजी कहते थे "कल्याण कर दित्ता," और वो ये भी कहते थे कि मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ हमेशा रहेगा. और हमेशा का मतलब यह नहीं कि सिर्फ़ इस जनम में. उन्का कहना था कि उनका आशीर्वाद भक्त के साथ भक्त के निर्वाण तक रहेगा

गुरुजी ने कभी कोई उपदेश नहीं दिया. कभी कोई रस्म निर्धारित नहीं की. फिर भी उनका संदेश भक्त तक कैसे पहुँच जाता था, यह केवल भक्त ही बता सकता है. इस विशेष "सम्बंध" से भक्त को न केवल खुशी और स्फ़ूर्ति मिलती थी, बल्कि इसकी वजह से भक्त में एक गहरा बदलाव भी आता था. भक्त एक ऐसे स्तर पर पहूँच जाता था जहाँ आनंद, तृप्ति और शांति एक साथ आसानी से मिल जाते थे. गुरुजी के चारो ओर दिव्य सुगंध रहती थी, मानों गुलाब के फूल खिले हो. आज भी उनकी खुशबू उनके भक्तों को गूरूजी के होने का अहसास दिलाती है.

31 मई 2007 को गूरूजी ने महामाधि ली. उन्होंने कोई उत्तराधिकारी नहीं छोड़ा. क्योंकि दिव्य प्रकाश का कोई उत्तराधिकारी नहीं होता. ऊनका कहना था कि भक्त को गुरूजी से सीधे जुड़ना चाहिए, और वो भी प्रार्थना और ध्यान के माध्यम से. गुरुजी का एक मंदिर है, जो कि बड़े मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह मंदिर दक्षिण दिल्ली में भाटी माईन्स के पास है. आज, जब गुरुजी अपने नश्वर रूप में नहीं है, उनका आशीर्वाद पहले ही की तरह प्रभावी और शक्तिशाली है - और उन सब पर भी उनकी समान अनुकम्पा है जो उनसे कभी मिले ही नहीं.

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2 ماه پیش در تاریخ 1403/04/28 منتشر شده است.
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