Baith Jata Hoon Mitti par Aksar With Lyrics | Inspirational Poem| बैठ जाता हुँ
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4 سال پیش
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Baith jata hun mitti par
Baith jata hun mitti par akshar
Kyun ki mujhe appni aukat achii lagti hai.
It is a great Inspirational and Motivational poem which is Said to be written by Hariwans Rai Bachhan Jii, but it is controversial because many experts believe it to be written by someone else.
Still it is one of the greatest poems in Hindi Literature.
Recited by Kaushal Pandey
@ThePandeyJi
Poem:-
बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।
ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है
पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्योंकि
एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले।
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ में क्या बाँध ली,
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे।
सोचा था घर बना कर बैठूँगा सुकून से
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला।
सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब,
बचपन वाला ‘इतवार’ अब नहीं आता।
शौक तो माँ-बाप के पैसों से पूरे होते हैं,
अपने पैसों से तो बस ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं।
जीवन की भाग-दौड़ में;
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है।
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम,
और
आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है।
कितने दूर निकल गए रिश्तों को निभाते निभाते
खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते पाते।
______________________________________________
baith jata hoon mitti pe aksar status
baith jata hoon mitti pe aksar status,
baith jata hoon zameen par,
baith jata hoon mitti pe,
baith jata hoon mitti pe aksar harivansh rai bachchan,
baith jata hoon zameen par status,
baith jata hoon aksar
Kyun ki mujhe appni aukat achii lagti hai.
It is a great Inspirational and Motivational poem which is Said to be written by Hariwans Rai Bachhan Jii, but it is controversial because many experts believe it to be written by someone else.
Still it is one of the greatest poems in Hindi Literature.
Recited by Kaushal Pandey
@ThePandeyJi
Poem:-
बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।
ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है
पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्योंकि
एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले।
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ में क्या बाँध ली,
वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे।
सोचा था घर बना कर बैठूँगा सुकून से
पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला।
सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब,
बचपन वाला ‘इतवार’ अब नहीं आता।
शौक तो माँ-बाप के पैसों से पूरे होते हैं,
अपने पैसों से तो बस ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं।
जीवन की भाग-दौड़ में;
क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है।
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम,
और
आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है।
कितने दूर निकल गए रिश्तों को निभाते निभाते
खुद को खो दिया हमने अपनों को पाते पाते।
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baith jata hoon aksar
4 سال پیش
در تاریخ 1399/01/05 منتشر شده
است.
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