18 सितम्बर 24 I आचार्य सम्राट श्री शिवमुनीजी म सा जन्म दिवस विशेष -Dr.Samkit Muniji M.S. live

Dr. Samkit Muniji M.S.
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2 هزار بار بازدید - 20 ساعت پیش - #श्री शिवमुनीजी
#श्री शिवमुनीजी म सा जन्म दिवस #Dr.Samkit Muniji M.S. live आंखों से दिखने वाला धर्म स्वर्ग पहुंचा सकता पर सिद्धी नहीं दिला सकता-समकितमुनिजी संसार की भीड़ से अलग होकर आत्मा में रमण करने ही खुल सकते सिद्धी पाने के द्वार ग्रेटर हैदराबाद संघ के तत्वावधान में मनाई गई आचार्य शिवमुनिजी म.सा. की जयंति हैदराबाद, 18 सितम्बर। तपस्या,सामायिक,विहार,लोच ये सब शरीर का धर्म है जो आंखों से दिखाई देता है। शरीर से होने वाला धर्म आत्मा का धर्म नहीं हो सकता है। मन,वचन व काया से होने वाला व्यवहार धर्म शुभ हो सकता है लेकिन शुद्ध नहीं हो सकता। मन व आत्मा भी अलग-अलग होने से मन का धर्म आत्मा का धर्म नहीं हो सकता। आंखों से दिखाई देने वाला धर्म स्वर्ग पहुंचा सकता है लेकिन सिद्धी नहीं दिला सकता है। सिद्धी के लिए आत्मधर्म ही चाहिए। ये विचार श्रमण संघीय सलाहकार राजर्षि भीष्म पितामह पूज्य सुमतिप्रकाशजी म.सा. के ़सुशिष्य आगमज्ञाता, प्रज्ञामहर्षि पूज्य डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने ग्रेटर हैदराबाद संघ (काचीगुड़ा) के तत्वावधान में श्री पूनमचंद गांधी जैन स्थानक में बुधवार को श्रमण संघ के चतुर्थ पट्टधर ध्यानयोगी आचार्य डॉ. शिवमुनिजी म.सा. की 83वीं जयंति पर गुणानुवाद करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आंखों से दिखाई देने वाली धर्म क्रिया आत्म धर्म तक जाने का माध्यम हो सकती है लेकिन अधिकांश लोग यहीं पर अटक कर रह गए है। हमारे राग,द्धेष जैसे कषाय कमजोर नहीं पड़ रहे है तो जन्मोजन्म तक ये क्रियाएं करते रहना सिद्धी नहीं मिलने वाली है। जब तक इसमें अटके रहेंगे ओर आगे नहीं बढ़ेगे राग द्धेष खत्म नहीं होंगे। आत्मधर्म कहीं भी बैठकर हो सकता उसमें क्रियाएं बाधक नहीं है। मोक्ष के लिए कुछ करना नहीं होता है जब तक करना बंद नहीं करेंगे मोक्ष नहीं होगा। मुनिश्री ने कहा कि हमारे आचार्य भगवन्त शिवमुनिजी प्रसिद्धी की चाह व भीड़ से दूर होकर आत्मरमण में लीन होकर भगवान महावीर के बताए उसी आत्मधर्म व साधना के पथ पर आगे बढ़ रहे है। वह ध्यान के प्रयोग से स्वयं का अध्ययन कर रहे है। आत्मसाधना के मार्ग पर चलने वाले एकान्त पसंद करते है। आचार्य शिवमुनिजी पिछले करीब 30 वर्ष से एकान्तर उपवास करने के साथ साधना में लीन है। उनका अधिकतर समय ध्यान व मौन में बीतता है। प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी ने कहा कि परमात्मा के दिल में हम है पर हमारे दिल में संसार है तो परमात्मा कैसे बन पाएंगे। परमात्मा बनने के लिए संसार का त्याग कर आगे बढ़ना होता है। जो आत्मा मोक्षमार्गी होती है वह यह नहीं देखती है कि मेरा ज्ञान कितना बढ़ा है वह यह देखती है कि मेरा आश्रव कितना कम हुआ है। बड़े संत वह होते है जिनकी साधना अनुकरणीय होती है। गायनकुशल जयवन्तमुनिजी म.सा. ने भजन ‘‘गुरूवर तुम ही भगवान तुम ही समाधान हमारे हो’’ की प्रस्तुति दी। प्रेरणाकुशल भवान्तमुनिजी म.सा.का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। धर्मसभा मेे श्रीसंघ के महामंत्री सज्जनराज गांधी एवं सुश्रावक हर्षकुमार मुणोत ने भी पूज्य आचार्य शिवमुनिजी म.सा. के प्रति श्रद्धाभाव व्यक्त करते हुए उनके स्वस्थ दीर्घायु जीवन की मंगलकामना की। जोधपुर, भीलवाड़ा, हिसार आदि क्षेत्रों से पधारे श्रावक-श्राविका भी मौजूद थे। धन्यवाद यात्रा के माध्यम हो रहे श्रावकों के घर स्पर्श समकितमुनिजी म.सा. के सानिध्य में ग्रेटर हैदराबाद 13 से 20 सितम्बर तक धन्यवाद यात्रा निकाली जा रही है। इसके तहत समकितमुनिजी द्वारा प्रतिदिन सुबह 6 बजे से स्थानक के आसपास के दो-तीन किलोमीटर के क्षेत्र में भ्रमण करते हुए अधिकाधिक श्रावकों के घर स्पर्श करने का प्रयास किया जा रहा है। घरों में पहुंच परिवार के सभी सदस्यों को धर्म व जैन संस्कृति से अधिकाधिक जुड़ने की प्रेरणा प्रदान की जा रही है। श्री कृष्ण-सुदामा चरित्र पर चार दिवसीय प्रवचनमाला कल से पूज्य समकितमुनिजी म.सा. के मुखारबिंद से दोस्ती के महत्व पर चार दिवसीय विशेष प्रवचनमाला श्री कृष्ण-सुदामा चरित्र की शुरूआत गुरूवार से होगी। इसी तरह भगवान पार्श्वनाथ की स्तुति में 22 सितम्बर को सुबह 11 बजे से छह घंटे तक मंगलकारी उवसग्गर स्रोत की आराधना की जाएगी। आराधना में हर घंटे कम से कम 27 श्रावक-श्राविका अवश्य मौजूद रहेंगे। इसी तरह 29 सितम्बर को व्रति श्रावक दीक्षा समारोह होगा। इसमें श्रावक-श्राविकाएं 12 व्रत में से न्यूनतम एक व्रत की दीक्षा ग्रहण करेंगे। चातुर्मास में 2 अक्टूबर को सवा लाख लोगस्स की महाआराधना होगी। आयम्बिल तप के महान आराधक पूज्य गुरूदेव भीष्म पितामह राजर्षि सुुमतिप्रकाशजी म.सा. की जयंति 9 अक्टूबर को आयम्बिल दिवस के रूप में मनाई जाएगी। निलेश कांठेड़ मीडिया समन्वयक, समकित की यात्रा-2024 मो.9829537627
20 ساعت پیش در تاریخ 1403/07/16 منتشر شده است.
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