History of Chanderi | चंदेरी का जौहर | चंदेरी का इतिहास | मुगल आक्रांताओं का खूनी इतिहास
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History of Chanderi | चंदेरी
History of Chanderi | चंदेरी का जौहर | चंदेरी का इतिहास | मुगल आक्रांताओं का खूनी इतिहास
मुगल आक्रांताओं एवं वीरांगनाओं के शौर्य का साक्षी है चंदेरी का जौहर स्मारक
चंदेरी का इतिहास महाभारत काल से जुड़ता है। चंदेरी, भगवान श्रीकृष्ण की बुआ श्रुति के पुत्र शिशुपाल की राजधानी थी। उस समय इसका उल्लेख चेदी राज्य के रूप में आता है। पांचवीं-छठवीं शताब्दी में जिन 16 जनपदों का उल्लेख मिलता है, उनमें सातवीं महाजनपद चेदी थी, जो सबसे धनाड्य जनपदों में शामिल थी। वर्तमान चंदेरी शहर से लगभग 18 किमी की दूरी पर जंगल में आज भी बूढ़ी चंदेरी में प्राचीन शहर के अवशेष बिखरे पड़े हैं। कालांतर में यह शहर काल के गाल में समा गया और 9वीं शताब्दी के बाद से वर्तमान चंदेरी अस्तित्व में आने लगा। चंदेरी के किले में लगे शिलालेख के अनुसार, चंदेरी में सांस्कृतिक गतिविधियां चंदेलों के समय (9वीं शताब्दी ई.) से प्रारंभ हो जाती हैं। वर्तमान चंदेरी नगर को 10वीं-11वीं शताब्दी में प्रतिहारवंशी राजा कीर्तिपाल ने बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया। इतिहासकार अलबरूनी एवं इब्नबतूता ने भी अपने लेखन में चंदेरी की समृद्धि एवं महत्व का वर्णन किया है। उस समय चंदेरी मुख्य व्यापार मार्ग पर स्थित था। मालवा, मेवाड़, गुजरात के प्राचीन बंदरगाह और डक्कन इससे जुड़े हुए थे। अपने राज्य का विस्तार करनेवाले अनेक शासक यहाँ से गुजरे। मुगल सेनाओं के काफिलों ने कई बार चंदेरी को लूटा, जिनमें महमूद गजनवी, अलाउद्दीन खिलजी, गयासुद्दीन तुगलक, अकबर, बाबर और औरंगजेब भी शामिल है। शासकों ने चंदेरी के महत्व को देखकर इसे व्यापारिक केंद्र एवं सैन्य छावनी की तरह विकसित किया। चंदेरी पर गुप्त, प्रतिहार, गुलाम, तुगलक, खिलजी, अफगान, गौरी, राजपूत और सिंधिया वंश का शासन रहा है। महाभारत काल से चंदेरी को देखें तो हम कह सकते हैं कि इस महान नगर शिशुपाल के अहंकार-अत्याचार का साक्षी है, तो भगवान श्रीकृष्ण की उदारता भी इसने देखी है। यह मुगल सुल्तानों की लूट-पाट, मुस्लिम सेनापति की गद्दारी और मुगल आक्रांताओं की क्रूरता का गवाह है, तो इसने हिन्दू योद्धाओं एवं वीरांगनाओं का पराक्रम भी देखा है। स्वाभिमानी नायिकाओं के जौहर को देखकर बाबर को तौबा-तौबा करते और उसकी बेगम को गश खाकर गिरते भी चंदेरी ने देखा है। चंदेरी ने अच्छा और बुरा, वैभव और पराभव, स्वर्णिम और अंधकारमय, सब प्रकार का समय देखा-भोगा है।
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chanderi ka itihas
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chanderi babar
चंदेरी का किला
चंदेरी का इतिहास
बाबर का खूनी इतिहास
खूनी दरवाजा
चंदेरी का जौहर
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चंदेरी का इतिहास महाभारत काल से जुड़ता है। चंदेरी, भगवान श्रीकृष्ण की बुआ श्रुति के पुत्र शिशुपाल की राजधानी थी। उस समय इसका उल्लेख चेदी राज्य के रूप में आता है। पांचवीं-छठवीं शताब्दी में जिन 16 जनपदों का उल्लेख मिलता है, उनमें सातवीं महाजनपद चेदी थी, जो सबसे धनाड्य जनपदों में शामिल थी। वर्तमान चंदेरी शहर से लगभग 18 किमी की दूरी पर जंगल में आज भी बूढ़ी चंदेरी में प्राचीन शहर के अवशेष बिखरे पड़े हैं। कालांतर में यह शहर काल के गाल में समा गया और 9वीं शताब्दी के बाद से वर्तमान चंदेरी अस्तित्व में आने लगा। चंदेरी के किले में लगे शिलालेख के अनुसार, चंदेरी में सांस्कृतिक गतिविधियां चंदेलों के समय (9वीं शताब्दी ई.) से प्रारंभ हो जाती हैं। वर्तमान चंदेरी नगर को 10वीं-11वीं शताब्दी में प्रतिहारवंशी राजा कीर्तिपाल ने बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया। इतिहासकार अलबरूनी एवं इब्नबतूता ने भी अपने लेखन में चंदेरी की समृद्धि एवं महत्व का वर्णन किया है। उस समय चंदेरी मुख्य व्यापार मार्ग पर स्थित था। मालवा, मेवाड़, गुजरात के प्राचीन बंदरगाह और डक्कन इससे जुड़े हुए थे। अपने राज्य का विस्तार करनेवाले अनेक शासक यहाँ से गुजरे। मुगल सेनाओं के काफिलों ने कई बार चंदेरी को लूटा, जिनमें महमूद गजनवी, अलाउद्दीन खिलजी, गयासुद्दीन तुगलक, अकबर, बाबर और औरंगजेब भी शामिल है। शासकों ने चंदेरी के महत्व को देखकर इसे व्यापारिक केंद्र एवं सैन्य छावनी की तरह विकसित किया। चंदेरी पर गुप्त, प्रतिहार, गुलाम, तुगलक, खिलजी, अफगान, गौरी, राजपूत और सिंधिया वंश का शासन रहा है। महाभारत काल से चंदेरी को देखें तो हम कह सकते हैं कि इस महान नगर शिशुपाल के अहंकार-अत्याचार का साक्षी है, तो भगवान श्रीकृष्ण की उदारता भी इसने देखी है। यह मुगल सुल्तानों की लूट-पाट, मुस्लिम सेनापति की गद्दारी और मुगल आक्रांताओं की क्रूरता का गवाह है, तो इसने हिन्दू योद्धाओं एवं वीरांगनाओं का पराक्रम भी देखा है। स्वाभिमानी नायिकाओं के जौहर को देखकर बाबर को तौबा-तौबा करते और उसकी बेगम को गश खाकर गिरते भी चंदेरी ने देखा है। चंदेरी ने अच्छा और बुरा, वैभव और पराभव, स्वर्णिम और अंधकारमय, सब प्रकार का समय देखा-भोगा है।
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در تاریخ 1402/04/31 منتشر شده
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