सुनहरी जालियाँ गुंबद सुहाना याद आता है | Aaqa Ka Madina Yaad Aata Hai | Ahmadul Fattah Faizabadi

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645 بار بازدید - 3 هفته پیش - सुनहरी जालियाँ गुंबद सुहाना याद
सुनहरी जालियाँ गुंबद सुहाना याद आता है | Aaqa Ka Madina Yaad Aata Hai | Ahmadul Fattah Faizabadi















































Director:- Irshad Ahmad
video Editor:-Irshad Ahmed
Audio Engineer:-Irshad Ahmed
Program recording dat 16/06/2024
vece by ahmadul fattah faizabadi
Program recording Location Masauli Sharif Dargah Barabanki Uttar Pradesh


















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your Queries:-
सुनहरी जालियाँ  गुंबद सुहाना याद आता है मुझे रह रह के आक़ा का मदीना याद आता है
छमा-छम नूर की बरसात थी और सामने ख़ज़रा रसूल-ए-पाक को नातें सुनाना याद आता है
हुदूद-ए-मस्जिद-ए-नबवी में चलना बैठना  उठना कबूतर को वहाँ दाना खिलाना याद आता है
वो छतरी ऐसे खुलती है कि जैसे पर फ़रिश्तों के फिर उस के साए में इफ़्तार करना याद आता है
वो जिस ख़ुश्बू से आक़ा को सहाबा ढूँड लेते थे वो ख़ुश्बू याद आती है पसीना याद आता है
तवाफ़-ए-क़ब्र-ए-हम्ज़ा कर के कहती है हवा अब भी तुम्हारा बद्र के मैदाँ में आना याद आता है
बक़ी'-ए-पाक से जब गुंबद-ए-ख़ज़रा नज़र आता कलाम-ए-आला हज़रत गुनगुनाना याद आता है
बी-ए-पाक का मंज़र
सहाबा की हसीं क़ब्रें वहाँ से गुंबद-ए-ख़ज़रा को तकना याद आता है
उठे ऊँगली क़मर टुकड़े हो सूरज भी पलट आए पहाड़ों को इशारे से बुलाना याद आता है
ये अहमद था नहीं लाइक़ कि जाता ये मदीने में मगर सरकार का फिर भी बुलाना याद आता है
शायर:
अहमदुल फ़त्ताह












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3 هفته پیش در تاریخ 1403/04/02 منتشر شده است.
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