कचरे के ढेर पर बचपन !,Childhood on a Pile of Garbage,watch it video
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6 سال پیش
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एक ही गाँव के कचरा
एक ही गाँव के कचरा बीनते नौनिहाल,कचरे के ढेर पर बचपन
इटावा में स्कूल चलो अभियान में फर्जी आंकड़ो का खेल।जिन बच्चो को स्कूल जाना चाहिए वो बीन रहे है सड़को व स्कूलों के बाहर कचड़ा। नौनिहाल बच्चों का बचपन और पढ़ाई कचरे के ढेर पर बीत रहा है
स्पेशल रिपोर्ट.........
-इटावा में स्कूल चलो अभियान की फर्जी आंकड़े बाजी का खेल चल रहा है।ग्रामीण इलाकों के बच्चे जिनकी उम्र 5 वर्ष से 15 वर्ष तक के लगभग है और जिनकी संख्या लगभग 100 के करीब है।इन बच्चो को जिस उम्र में पढ़ाई का सबक सीखना था,वो सभी बच्चे सुबह उठ कर सड़को पर कचरा बीनते हैं ।ये बच्चे सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने नही जाते हैं।सरकार का स्कूल चलो अभियान इनके घरों तक नही पहुंच सका है।इन गरीब परिवारों के बच्चो के कचरा बीनने के बाद ही इनके परिवार का बमुश्किल खर्च चल पाता है।
सरकार का स्कूल चलो अभियान फ्लॉप
इन बच्चो के परिवारों में शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं है।इसलिये वो अपने बच्चों को सुबह स्कूल भेजने के बजाय नालियों और सड़कों से कचरा बीनने के लिए भेजते हैं।सरकार स्कूल चलो अभियान के तहत सूबे के विभिन्न जिलों में तमाम तरह के कार्यक्रम चला रही हैऔर इन कार्यक्रमो का यही उद्देश्य है कि समाज के ऐसे की गरीब परिवार के बच्चो व अभिवावकों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाय।अब सवाल यह है कि सरकार के स्कूल चलो अभियान की जागरूकता वाले कार्यक्रम आखिर इन गरीब बच्चो व इनके अभिववको को शिक्षा के प्रति जागरूक करने में अब तक असफल क्यो साबित हो रहे हैं?
पूरे गांव के बच्चे स्कूल जाने के बजाय सीख रहे कचरा बीनने का सबक
सूबे के इटावा जनपद में महेवा ब्लॉक का कुंदनपुर ऐसा गांव है,जहां के ज्यादातर बच्चे प्रतिदिन सुबह उठकर स्कूल जाने के बजाय इलाके में कचरा बीनने का सबक सीखने जाते हैं।इस गांव में सरकार में जो प्राथमिक विद्यालय स्थापित किया है उस स्कूल में गरीब परिवारों के बच्चे जाते तो हैं,लेकिन पढ़ने नही, बल्कि स्कूल के बाहर पड़े कचरे को बीनने जाते हैं।और इस स्कूल में तैनात शिक्षक भी इन बच्चों व इनके अभिवावको को शिक्षा की महत्ता को कतई समझाने का प्रयास नही करते हैं।क्या यह सरकारी शिक्षक सरकार के स्कूल चलो अभियान के अंग नही है?
फर्जी आंकड़ेबाजी खेल
इटावा जनपद के बीएसए अजय कुमार बताते हैं कि इस शैक्षिक सत्र में स्कूल चलो अभियान के तहत 1लाख 24हजार बच्चे पंजीकृत कराए जा चुके है।उन्होंने यह भी बताया कि पिछले वर्ष की तुलना में 6हजार बच्चे अधिक पंजीकृत हुए हैं।अब सवाल यह है कि आखिर कचरा बीनने वाले यह नोनिहाल शिक्षा विभाग के दिये गए आंकड़ो में अपनी जगह क्यो नही बना सके?
बजट का नही दे पाए हिसाब किताब
सूबे में चल रहे स्कूल चलो अभियान में हर वर्ष कई करोड़ रुपये सरकार खर्च करती है।इस बार भी इटावा जिले में भारी भरकम बजट आया है।जिसे खर्च भी किया गया है।लेकिन अब यह बजट कहाँ खर्च हुआ इसका हिसाब किताब इटावा बीएसए नही दे पा रहे हैं।दरअसल सच्चाई यह है कि सरकार के स्कूल चलो अभियान का बजट तो खर्च किया जाता है,लेकिन इस अभियान का बजट जिन जगरूकता फैलाने वाले कार्यक्रमो में खर्च किया जा रहा है,उसका इम्पेक्ट उस समाज पर कताई नही पड़ पा रहा है,जो समाज शिक्षा के प्रति कतई जागरूक नही है।कुल।मिलाकर इटावा में सरकार का स्कूल चलो अभियान फ्लॉप शो साबित हो रहा है।
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इटावा में स्कूल चलो अभियान में फर्जी आंकड़ो का खेल।जिन बच्चो को स्कूल जाना चाहिए वो बीन रहे है सड़को व स्कूलों के बाहर कचड़ा। नौनिहाल बच्चों का बचपन और पढ़ाई कचरे के ढेर पर बीत रहा है
स्पेशल रिपोर्ट.........
-इटावा में स्कूल चलो अभियान की फर्जी आंकड़े बाजी का खेल चल रहा है।ग्रामीण इलाकों के बच्चे जिनकी उम्र 5 वर्ष से 15 वर्ष तक के लगभग है और जिनकी संख्या लगभग 100 के करीब है।इन बच्चो को जिस उम्र में पढ़ाई का सबक सीखना था,वो सभी बच्चे सुबह उठ कर सड़को पर कचरा बीनते हैं ।ये बच्चे सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने नही जाते हैं।सरकार का स्कूल चलो अभियान इनके घरों तक नही पहुंच सका है।इन गरीब परिवारों के बच्चो के कचरा बीनने के बाद ही इनके परिवार का बमुश्किल खर्च चल पाता है।
सरकार का स्कूल चलो अभियान फ्लॉप
इन बच्चो के परिवारों में शिक्षा के प्रति जागरूकता नहीं है।इसलिये वो अपने बच्चों को सुबह स्कूल भेजने के बजाय नालियों और सड़कों से कचरा बीनने के लिए भेजते हैं।सरकार स्कूल चलो अभियान के तहत सूबे के विभिन्न जिलों में तमाम तरह के कार्यक्रम चला रही हैऔर इन कार्यक्रमो का यही उद्देश्य है कि समाज के ऐसे की गरीब परिवार के बच्चो व अभिवावकों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाय।अब सवाल यह है कि सरकार के स्कूल चलो अभियान की जागरूकता वाले कार्यक्रम आखिर इन गरीब बच्चो व इनके अभिववको को शिक्षा के प्रति जागरूक करने में अब तक असफल क्यो साबित हो रहे हैं?
पूरे गांव के बच्चे स्कूल जाने के बजाय सीख रहे कचरा बीनने का सबक
सूबे के इटावा जनपद में महेवा ब्लॉक का कुंदनपुर ऐसा गांव है,जहां के ज्यादातर बच्चे प्रतिदिन सुबह उठकर स्कूल जाने के बजाय इलाके में कचरा बीनने का सबक सीखने जाते हैं।इस गांव में सरकार में जो प्राथमिक विद्यालय स्थापित किया है उस स्कूल में गरीब परिवारों के बच्चे जाते तो हैं,लेकिन पढ़ने नही, बल्कि स्कूल के बाहर पड़े कचरे को बीनने जाते हैं।और इस स्कूल में तैनात शिक्षक भी इन बच्चों व इनके अभिवावको को शिक्षा की महत्ता को कतई समझाने का प्रयास नही करते हैं।क्या यह सरकारी शिक्षक सरकार के स्कूल चलो अभियान के अंग नही है?
फर्जी आंकड़ेबाजी खेल
इटावा जनपद के बीएसए अजय कुमार बताते हैं कि इस शैक्षिक सत्र में स्कूल चलो अभियान के तहत 1लाख 24हजार बच्चे पंजीकृत कराए जा चुके है।उन्होंने यह भी बताया कि पिछले वर्ष की तुलना में 6हजार बच्चे अधिक पंजीकृत हुए हैं।अब सवाल यह है कि आखिर कचरा बीनने वाले यह नोनिहाल शिक्षा विभाग के दिये गए आंकड़ो में अपनी जगह क्यो नही बना सके?
बजट का नही दे पाए हिसाब किताब
सूबे में चल रहे स्कूल चलो अभियान में हर वर्ष कई करोड़ रुपये सरकार खर्च करती है।इस बार भी इटावा जिले में भारी भरकम बजट आया है।जिसे खर्च भी किया गया है।लेकिन अब यह बजट कहाँ खर्च हुआ इसका हिसाब किताब इटावा बीएसए नही दे पा रहे हैं।दरअसल सच्चाई यह है कि सरकार के स्कूल चलो अभियान का बजट तो खर्च किया जाता है,लेकिन इस अभियान का बजट जिन जगरूकता फैलाने वाले कार्यक्रमो में खर्च किया जा रहा है,उसका इम्पेक्ट उस समाज पर कताई नही पड़ पा रहा है,जो समाज शिक्षा के प्रति कतई जागरूक नही है।कुल।मिलाकर इटावा में सरकार का स्कूल चलो अभियान फ्लॉप शो साबित हो रहा है।
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6 سال پیش
در تاریخ 1397/05/14 منتشر شده
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